पृष्ठ:क्वासि.pdf/१२१

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नैशयाम कल्प-मान निशि का अति क्षुद्र याम, आज हुआ कल्प मान, चल, चपल तिमिप आज हुभा युग समान नैशयाम, कल्प मान। शस्थिर, अस्थिर में होता है जब शाश्वत समावेश, स गय हो जाते हैं जर अनित्य काल, दश, तब होते है विलुप्त अचिर चला कलान नरोश, सुदर, शिन, सत् अकाल रहता है एक शेप, पाता है परिवर्तन तर चिरता का प्रमाण, चपल निमिप युग समान । २ निशि के चचल क्षण को तुम देते स्थिर स्वरूप, छिटकाते स्मित किरण, हरते घन तम कुरूप, भरे हुए पूर्णार्पण निज नयनों में, अनूप, आए साकार बने, तम मेरे चिर अरूप उस क्षण अकित होताक्यों न अमरता विधान ? नेशयाम, कल्प मा11 छियानवे