पृष्ठ:क्वासि.pdf/१२३

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कमला नेहरू की स्मृति मे 2 2 देवि, इतने ही दिनों का या यहा भावास था यह क्या नरा थी? तो, मी तो शप कुछ मधुमास था यह। १ तोड कर उस एहला को जो पड़ी थी मृदुरा पग म,-- राजहसिनि, उड चली इतनी सुबह अज्ञेय मग में ? हो गये सम्पूर्ण तया तब काज सर इस अानित जग में ? चिर महा अभिक्रिमण का कोन सा उल्लास था वह देवि, इतो ही दिनों का क्या यहाँ आवास या यह ? २ आला आहुति के लित ये खेल तुमो खून खेले, हत ! शुचि आदर्श के हित कोन दुख तुमो न झेले ? लो, तुम्हारे स्वद्या प्राणप्रिय अप है अकेले, सुमुसि, इतने ही दिनों का क्या तुम्हें श्रयमाश था यह ? देवि, इतने ही दिनों का क्या यहा आनास था यह ? ३ देनि, क्या उस पार गूंजी का ह की मुरली सलोनी ? या कि कोहोत्सुस्थ मिस रोली जगत से 'हग मिचौनी ? प्रानवे