पृष्ठ:क्वासि.pdf/१२७

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हम तो ओस-बिन्दु-सम ढरके बरसाया? भोस नि दु सम ढरके, हम तो ओस रि दुसम ढरके, पाए इस जडता म चेतन तरल रूप हम घरके, हम तो ओस नि दु सम दररो । १ ना जाने किसी मनमानी कर हमने यया जान क्यों हमको इस सत्र मरु यल में सरसामा ? किसने यो जखता र धन में आध हमें नरसाया कोन खिलाडी हमको सीमा ब धन दे हरपाया? या किसका गादेश कि उतरे हम नर से झर झर है ? हम तो ओस वि दुसम ढरहे। २ साज वाष्प बन उड़ जाने की साध हिये उठ आई, मन पछी ने पंख तोलने की रट अाज लगाई, १ एक सौ दो