पृष्ठ:क्वासि.pdf/१२८

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क्वासि वया इस अनाहत ने आम जण की ध्वनि सुन पाई ? अथवा आज प्रयाण काल को भर शख धनि लाई ? लगता है, मानो जागे हे स्मरण आज अम्बर क, हम तो आस रिद सम ढरके। श्री गोश कुटीर, प्रताप कानपुर दिक ५ जुलाई १६४२ एक सौ तीन