पृष्ठ:क्वासि.pdf/१३४

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कासि षय हुश्रा मेरा वह निहा आलास विकार, ध य हुए तुम्हें निरख मम मौलित युगल नयन ।। पुलकित मम रोम रोम, मधुर घणनमय मम तन ! मुक चिर याचक को यो पा औचक दिया दान, मै निद्रित, त्वरित बना चिर जागृत के समान, (वम् मय हो गए, सजा, ये मेरे विकल प्राण, श्रा तक भी अधरों पर हे वे तब मधु रस करण, पुलकित मम रोम रोम, मधुर एनमय मम तन । केनीय कारागार, बरेली, दिनाङ्क ३ जुलाई १९४४ एक सौना