पृष्ठ:क्वासि.pdf/१३५

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मेरे मधुमय रवा रॅगीले ? बन बन कर मिट गए अनेको मेरे मधुमय स्वर रॅगीले, भर भर कर फिर फिर सूखे हैं मेर लोचन गीले गीले । ? मेरा क्या कोशल ? क्या मेरी चचल तूली ? या मेरे रंग गया मेरी करपना हशिनी ? मेरी क्या रस रास रति उमग? रे कब का रंग रूप चितेरा १ में कर विचर सका राग कुल संग ? गम राप्नों के चित्र साथ ही बने, स्वर्ग ही मिटे हबीले , भर भर कर फिर फिर सूखे हे ये मेरे रँग पा रॅगीले । मेरे स्वप्न विलीन हुए हैं, कि तु, शेप है परछाई सी, मिट7 को तो गिटे, कि तु वे छोड गए है इस झोई सी, उस झिल मिल सी स्मृति रेखा से है ये फॉरी भाकुलाई सी, उसी रेख से बन उठते हैं फिर फिर नवल चित्र चमकीले, बन बन कर मिट गए अनेको मेरे सपोपीले गीले । ३ कलाकार कब का मै, प्रियतम, कन मेरे तूलिका चलाई ? मैने कब यलत कला के मदिर में वत्तिका जलाई ? थों ही कभी कॉप उट्टी है मेरी अँगुली और कलाई, पक सौ दस