पृष्ठ:क्वासि.pdf/१३९

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प्राणो के पाहुन प्राणों के पाहु । श्राप औ' चरो गाइक क्षण में, हम उकी परछाई ही से चले गए इस क्षण में | कुन गीला सा, कुछ सोला सा, अतिगि मैया जजर सा, ऑगा में पतझड के सूरा पत्तों का मर्भर सा, नातिथेय के सह कण्ठ में शागत का धर्मर सा, यह स्थिति बराकार अकुलाहट हामो र अतिथि के मन में? प्राणों के पाहुन पाए और सौट चले इस क्षण में । २ शू य अतिथिशाला यह हमने रन पर क्यों 741ई ? जग को अपनी शिप चातुरी हमो यो 7 जाई ? उनके चरणागमन स्मरण में हमी उमर गई, अष्य दान कर कीच मचा दी हमने अतिथि सदन में, प्राणों के पाहुन श्राए श्रो' लौट पडे इ क्षण में । ३ वे गदि रच पूछते क्या है अतिथि कक्ष यह सीना। वे यदि तनिक पूछते का है स्फुरिस बात यह गीला । तो हो जाता ज्ञात उ है है गह की ही लीला, एक सौ चौदह