पृष्ठ:क्वासि.pdf/१४१

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गान-निरत मम मन-खग ध्वनिनादित फिर फिर किर, चिव चिव चिवें बोल रहे शेल विहग, गतरतर, गान निरत मम मन राग। १ बाल रश्मि स्नात, मुदित, निखरी पर्वत रानी, उमॅग उठी म सूरी नाल नेह रस सानी, पाना दोलित शत शत शाए रुकी, नृत्य निरत तरु पक्षय, द मगन सत्र अग जग, ध्वनि नदित वृत वृत, गान निरत मम मन राग । २ सघन हरित पल्लवयुत अयुत डाल भुज वाली, नाच रही यह गति रत गिरि जी मतवाली, डोल उठी ये बाहें बरबस सी दे ताली श्राली री, यह छबि लख पाए मन क्यों न उमॅग' किर किर किर, चि चि चिवें बोल रहे शैल विहग । ३ देखो, यह, ध्वनि आई, सीटो सी, कानों में,- किसी भागे राग की। या उसके प्राणों में तड़पन है ? उलझन है क्या उसके गानों में ? एक सौ सोलह