पृष्ठ:क्वासि.pdf/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कारीि? 'कासि 2' की यह टेर मेरी, 'नास्मि' की अनुगूंज आई, नाज अम्मर से उतर कर यह प्रतिनि दी सुनाई, 'स्मि' की अनुगू ज आई। { १ गिल, से पा सकोगे । गगनचारी वरण मम ? पाके भी यकगे पर। र पदासरण मम, कणित पर Lif | अगम्या, हे मतका चरणाभरण गग, यो गहन आकाश वाणी म । गगन के बीच छाई । स्मि' की अनुज शाई। २ देव, मैं अष्टाङ्गयुत प्रणिपात में ब्रह्माण्ड धेरू, नाम माता जाप में सब सौर गण्डल चक्र फेल, गोद में न रखीच तुमको यदि तडपकर आज टेक है भरोसा यह तभी तो 'सासि ?' की यह लो लगाई। 'नास्मि' की अनुगूज आई। ३ 'नास्मि' कहने से न होगी तनिक भी विचतित प्रतीक्षा, सुदृढ़ आस्तिक मारकी त्यों ले रहे हो तुम परीक्षा, एक सौ प्रहार