पृष्ठ:क्वासि.pdf/१७

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completest and most integral form". इसका अर्थ है कि “जीवादी प्रथा, यानी सामाजिक परिपाटी, को कुण्ठित करने के लिए, पूँजीवादी जीवन-यापन-वाद और व्यक्तिवाद को कुण्ठित करने के लिए, कैलाशाही' अराजकवाद और धन-लाभ प्राप्ति को कुण्ठित करने के लिए यह आवश्यक है कि समाजवादी श्रमिक वर्ग पक्षावलम्बी साहित्य के सिद्धान्त को सम्मुख रखे, उसका प्रतिपादन करे, उस सिद्धान्त को विकसित करे, और उस सिद्धान्त को सम्पूर्ण एवं अत्यन्त अविभक्त रूप से कार्य रूप में परिणत करे " जो धारणाएँ, जो सैद्धान्तिक मान्यताएँ मार्क्स, एंगल्स और लेनिन की हैं उनके अनुसार तो यही निष्कर्ष निकलेगा जो महामानव लेनिन ने निकाला है। परन्तु जो बात विचारणीय है वह यह कि क्या उनकी वे मान्यताएँ ऐतिहासिक रूप से सत्य हैं ? भारतीय साहित्य की ओर पात कीजिए और देखिये कि क्या मार्क्स-ऐगल्स-लेनिन्र की बात ठीक है। उन्द्रका यह कथन, कि श्रेणीबद्ध समाज में साहित्य कला तथा अन्य कलाएँ श्रेणी विशेष के हितों को प्रतिबिम्बित करती हैं, भारतीय दर्शन-साहित्य, उपनिषत् साहित्य, आदि समय-वाहिन्ध पर घटित होता है ? भारतीय दर्शनों का साहित्य किस श्रेणी के हित को दरसाता है ? क्या ब्राह्मण श्रेणी के ? कदापि नहीं। ईश, केन, कठ, शादि उपनिषत् ग्रन्थों का साहित्य किल श्रेणी के हित का प्रतिबिम्बक या समर्थक है ? रामायण क्या क्षत्रिय श्रेणी-हितों का उल्नायक ग्रन्थ है ? जिसका मस्तिष्क यथास्थान है वह तुरन्त देख लेगा कि माल गल्स-लेनिन का वह पक्षावलम्बी सिद्धान्त भारतीय साहित्य की इन धाराओं पर लागू नहीं होता। और चलिये । अजन्ता के गुहा चिन्न किस श्रेणी के हित-प्रतिबिम्बक हैं ? यो मा तीर, लगे तो तीर, नहीं तो तुक्का है ही-इस प्रकार से काम नहीं चलेगा। मैं बह मान लेता हूँ कि कुछ देशों में, कुछ काल में, साहित्य और कला श्रेणी हित-प्रतिबिम्बक बनकर रह गए हों। पर, यूरोप के चार-छ: छोटे-मोटे देशों में प्रवाहित तत्कालीन धारा को शाश्वत सैद्धान्तिक सत्य का स्वरूप दे देना भूल है। मैं पक्षावलम्बी साहित्य का विरोधी थोड़े ही हूँ? हिन्दी में जनसमूह की इच्छाओं, आकांक्षाओं, श्राशाओं, विकास-इच्छाओं, नवनिर्माण-भावनाओं को लेकर ऊँचे स्तर का साहित्य-सृजन हो-यह मेरी हार्दिक अभिलाषा है। पर, एक शब्द को लेकर जो किच-किच किट-किट आये दिन होती रहती है वह