पृष्ठ:क्वासि.pdf/१९

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२० महामहिम स्तालिन ने भाषा-शास्त्र समस्या और राष्ट्रीय प्रश्न पर अपभे विचार व्यक्त करते हुए एक स्थान पर कहा है- Every nation, wbether large or small, has its own qualita- iive peculiarities, its specific features which belong to it alone and are oot found in orber nations. These peculiarities are the contri. bution wbich every nation makes to the common treasury of world Culture, datag and eeriching it. इसका अर्थ हैः प्रत्येक छोटे या बड़े राष्ट्र को अपनी निज की गुणात्मक विशेषताएँ होती है। उसके अपने विशिष्ट लक्षण होते हैं। ये विशेषता उसी राष्ट्र को अपनी स्वयं की होती हैं और अन्य देशों में ये नहीं पाई जाती । ये विशेषताएँ वह अंशदान है जो प्रत्येक राष्ट्र विश्व-संस्कृति के सार्वलौकिक कोष में (अप भाग के रूप में) देता है और इस प्रकार प्रत्येक राष्ट्र उस संस्कृति-कोष को परिवर्द्धित एवं समृद्ध करता है।" इसका स्पष्ट संकेत इस बात की भोर है कि किसी देश नही सस्कृतिक साहित्यिक कृतियों का मूल्यांकन, बिना उस देश की विशेषताओं को ध्यान में रखे, किया नहीं जाना चाहिए। और भारतीय साहित्यिक कृतित्रों के मूल्यांकन के समय यदि हम अपने देश को-स्तालिन के शब्दों में - गुणात्मक विशेषताओं को सम्मुख नहीं रखेंगे तो हमारा आलोचना-प्रयास एकांगी अथवा अवैज्ञानिक एवं असत् होगा। हमें देखना यह है कि हमारे देश की गुणात्मक विशेपत्ता क्या है ? मैं स्तालिन महोदय को 'गुणात्मक' विशेषता की शब्दावली के पीछे नहीं पड़ना चाहता। इसलिए मैं इसी प्रश्न को यों रखू गा कि हमारे राष्ट्र की आत्मा बन्या है ? किस ओर उसका झुकाव रहा है, और है ? हमारे राष्ट्र का लक्ष्य क्या है ? कहाँ उसकी दृष्टि है ? किस ओर वह अपने ध्यान, अपनी कल्पना, अपने विचार का शर-सन्धान करता है ? उसने किस विचार या वस्तु को अपने जीवन की परम प्राप्तव्य Sunnur Boun)और परम पुरुषार्थ माना है ? यदि इन प्रश्नों की ओर हम देखें और उन पर विचार करें तो हमें अपने राष्ट्र की गुणात्मक क्या, गुणातीत विशेषता का पता चलेगा । श्राइए, हम इस श्रोर अपना ध्यान केन्द्रित करें। भारत की जो आत्मा है, वही भारतीय साहित्य की प्रात्मा है- श्रार्थिक सामाजिक विषमता, खाने-पीने विषयक अनेकता, राजनीतिक एकाधि- पत्य-अभाव, श्रादि के रहते हुए भी हमारा यह भारतवर्ष जो 'शुन तुपार