पृष्ठ:क्वासि.pdf/२२

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AL प्रणोड़ना, भारतीन आत्म-अनुसन्धान के रूप में, सहस्त्राब्दियों से हमारे देश के आँगन में मचलती, खेलती, दौड़ती, हरती, विहँसती, होती और रुलाती रही है। राज-दरबार में, मनोरंजन के लिए लिखे गए, साहित्य में भी यह एक बघाबर उठ-उठ माती रही है । राम के "तेहिनो दिवसागता" और कालिदास के "वर्षा -लोके भवति सुखिनो प्यन्नथा वृत्तिचेतः” में वही हूक है, वहीं पर- पार की सुध पाने की अनुरतामनी असन्तुष्टि है। आज यदि भारतीय साहित्य में और हिन्दी-साहित्य में यह परम श्लाध्य, चरम उन्नति-प्रेरणा- दायिनी, नर-नारायण-कारिणी प्रेरणा प्रतिविम्बित होती है तो पदार्थवादी थालोचक क्यों रूठे ! क्यों नाराज हो ! क्यों नाक-भौं सिकोड़ें ? यह उनके देश की थाती है। उन्हें तो इस बात पर गर्व करना चाहिए कि भारत की सरि जागरूक श्रात्मा ने, युगों के प्रवाह में डूब-उमर कर भी, अपने स्व-धर्स को, स्व-भाव को, स्व-लचर को तिरोहित नहीं होने दिया। हाँ, पर प्रश्न पूछा जा सकता है कि अन्ततः भारतीय नात्मा की इस शाश्वत शोह प्रेरणा को ऐसा विशेष रूप क्यों दिया जाय । ज्ञान-पिपासा के रूप में, अति टन की बलवती साकांक्षा के रूप में, पाँच मील गहरे सतुम में पैठने और पांच मोल अपर तुङ्ग गिरि शिखर पर चढ़ने के प्रयत्नों प्रेमा तो संलार-भर में व्याप्त है। इसमें हमारी ही क्या विशे- पाता है ? बही तत्त्व-दर्शन की, अगदेखे की अभिलाषा अन्यत्र भी तो विध- मान है ? हो, शालेच्छा तो सर्वत्र है। बिना इस जिज्ञासा-भाव के मानव एक डब भी ग्राहो नहीं बढ़ सकता। पर, "पर... इस प्रकार की बात कहने वाले मित्र यदि इस प्रश्न पर किंचित् और गम्भीरता से विचार करेंगे तो उन्हें इस और उस प्रेरणा का श्रन्तर स्पष्ट हो जायगा। वर्तमान विज्ञान जिज्ञासा और भारतीय परम्परा की जिज्ञासा में जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण श्रन्तर है वह यह है कि वर्तमान जिज्ञास!-भावना बहिमुखी है और भारतीय परम्परा की जिज्ञासा-भावना अन्तमुखी है । यह केवल मात्र परिमाण मन्दर है (Qualiterive Difference ) है, सो बात नहीं है। यह विशुद्ध गुणात्मक अन्तर (Quantitative Difference) है। हमारा मानस, हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति हमारे वैदिक जैन बौद्ध विचार, सय-कुछ अन्त- भुखी एवं अन्तदर्शन के अभ्यासी हैं। इसलिए विज्ञान सम्बन्धी जिज्ञासा और भारतीय जिज्ञासा की परम्परा को एक कोष्ठक में बन्द नहीं किया जा यह और, मानव भी ऐसा प्राणी है कि वह किसी तीतरफन्द था अबूतर