पृष्ठ:क्वासि.pdf/३४

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क्वासि पर यह तो कच्चा हे, हे मेरे वध मुक्त, है इसमें छिद्र कई, और अनेकों विकार, प्रिय, जीवन-नद अपार । ४ पहले इसके कि करो सजा वेणु नादन तुम, पहले इसके कि करो स्वर का आराधन तुम, भेज अग्नि पुरुज, करो पनका रज भाजन तुम, छूट जाय जिससे यह तरण मरण भीति-ार, प्रिय, जीवन नद अपार । श्री गणेश कुटीर, कानपुर दिनाङ्क १२६ १९३६ (अग्नि दीड काल) सात