पृष्ठ:क्वासि.pdf/३६

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वासि आज वक्ष, माथे, कटि, उर पर हे चीशुक तरल लाजमय, नेह सफल तब जान सलोनी ! जब हो जाए इस पट का लय, पट ही क्या ? कचन काया भी मचलेगी निदह भाव से, उस दिन जब उनके सुपरस से होंगे रोम क्टकित, गनिमय, ६ चल उतार, अंग बस्तर आली, तू क्षरा भर म होगी पियमय, अब केसा बुराव साजन से १ पूर्ण हुआ तेरा क्रय विक्रय, श्री गणेश कुटीर प्रताप कानपुर दिनाङ्गा १०६ १९२६ अपराह्न नौ