पृष्ठ:क्वासि.pdf/३७

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चेतन-वीसा प्रियतम, मम रोम रोग, रबर स्वनित आज, मेरी चेतन वीणा है गुजित, विणित आज र घर घरनलि आज १ सहसा मिल गा आज मरे सन तर तार, गूजी झकार, मधुर उमगी मधु गापार, आज पूर्ण हुआ, प्राण, जी77 का स्वर सिगार, पारोहण, पारोहण, श्रुति, लय, राम धनित माज | रोम रोग र आज। २ गीया के ककुम' बो ये व ल देश काल , मेरा अस्तित्व बना इसका रसमय HTTP | प्रतिक्षण हिय का रूप दन देता हे नियत ताल, अपिल, अनल, जल, थल, नि झलक उठे स्वर समाज रोम रोम स्वनित भाज। १ वीणा की थी, एक अपर, एक नीचे वाणा दण्ड दुस