पृष्ठ:क्वासि.pdf/३८

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धासि ३ गूंजी चेतन चीणा, प्रकृति नटी नाच उठी, सृन दिक् झाल झुके, सिरजन की आँच उठी, अपनी इतिहास कथा सकल सृष्टि लॉच उठी अणु अणु में, किरणों में रह मधुर स्वर विराज । रोम रोम स्वनित आज । के द्रीय कारागार, बरेली दिनाङ्क २२१ १६३४ } ग्यारह