पृष्ठ:क्वासि.pdf/४५

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मेघ-आगमन नाए मेघ घने, सजन, ये श्राए मेघ घने, आज श्याम चादर के चॅदुए अम्बर बीच तने, सजन, ये श्रार मेघ बने । १ अन मत छिदको दूर, प्राण धन, देसी, होता है धन गर्जन, हुलसा है जगती का कण कण, वसुधा देरा रही हैं छिन छिन, नवल नवल सपने, सजा, ये आए भेष धने । कहाँ कहाँ की सुध बुध सारी---- हिय बिच जागी बारी बारी, आओ तुम मम गगन बिहारी, गजन के तर्जन से अमन हुए प्राण अपने, सजन, ये श्राए मेघ धने। ३ चमकी असि सी कटिला चपला, तडपी हिय रति नित अच चला, अठारह