पृष्ठ:क्वासि.pdf/४६

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कासि उमड रही हग धारा विकला, अवा विलम्बा क्यों ? हॅस मुसकाले, आओ हिय लगो, सजन, ये श्राए मेघ घने । & ४ इतमे ये आवरण तुम्हारे-- हमसे नहीं हटेंगे प्यारे, अपनी माया आप सॅबारे,- धन अयगुरटन के भीतर से, झॉको नेह सने, सजन, ये। आए मेघ घसे ।। श्री गणेश कुटीर प्रताप, कानपुर दिनाङ्क २६ ६ ३६ उन्नीस