पृष्ठ:क्वासि.pdf/४७

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बज उठा आनद लय का । बज उठा शानद्व' लय का , मद्र जी जी गगा मे, गमन का स देश सहसा हो उठ/ संस्कृत मा में मद्र पनि गूंजी गगन में ! ? आन पहुंचा है कही रो निष्करण का यह संदेशा, मोह केसा १ छोह केसा ? गुप्त पथ का क्या अंदेशा ? तम ही हे पथ में, हे मृत्यु तो चिर हिमेशा । मत डरो, ओ चिरनवासी, तम हटेगा एक क्षण में ! मद्रनि गूंजी गगन में। २ डाल श्यामल केश सुरा पर, और चादर ओढ काली, यह पधारी मृत्यु रानी छम भूषा नेश वाली, हे नहीं यह असित, समझो मत इसे काली कराल, अमरता लाई छिपाकर यह गरण के आवरण म ! मद्र ध्वनि पूँजी गगन में। ढोल था मृग चीस