पृष्ठ:क्वासि.pdf/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कासि जिनको तुगने स्वकर परस से-- कभी किया था झन झन, उ मन ।। आज बहीं माटी की पुतली, आई हिय हारी सी !!! प्रिय, मे आज भरी भारी सी। चित्र शिरप श्राचार्य श्रा असितकुमार हालदार के निवास स्थान पर लखनऊ दिनाङ्क १५ दिसम्बर १९३८ राति ३६ अट्ठाईस