पृष्ठ:क्वासि.pdf/५७

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हासि शू य दिशा, पवन शा त, नभ पथ दुर्गम निता त, कोन प्रेरणा अगम्य, प्राण को रहो उछाल ? फेलार पख जात। ५ श्वास तुध, चचु ६, कि तु लगी लगन शुद्ध, डेनों की सनसन म जागरूकता विशाल, फलाए पंस जाता ६ उड़ा है, उडना है, पीतम दिशि याग नही, केरल हो पिय पद में प्रणत भाल , फैला हे पख जाल । मुडना है, श्री गणश कुटीर, प्रताप, कानपुर दिनाङ्क ६ १३६ तीस