पृष्ठ:क्वासि.pdf/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

छासि ७ प्राण , खीरा नाती थी कभी कभी जो तुम पर, उसकी स्मृति अन बेधा करती है हिय दिन भर, क्षमा करो, श्री विलुप्त चिर उदार हृदयेश्वर, हम न तुम्हें जान सके जर तुम ये परम सुगम, अब तो तुम बिन ज्यो त्यों काट रहे जीवा हम । स्मरणों की माला में फूल शूल दोनों है, हिय में निभ्राप्ति और अकथ भूल, दोनों है, जीवन वन म शतदल ओ बबूल, दोनों है, तव स्मृति मा है ओ है यह मम दुर्भाग्य अंगम, दूभर सा कटता है तम दिन जीवन, प्रियतम । आज हमारे भुज ये है तेष परिरम्भ शू य, अाज भटकते है हम जग में अवलम्प शू य, विगलित हम आज, सजन, हुए ज्ञान दम्भ शूथ, रो रोकर किसी तरह चलता है जीवन क्रम, ज्यो त्यो ही कटता है तुम बिन जीवन, प्रियतम । श्री गणेश कुटीर कानपुर दिनाक २५ नवम्बर १९४५ अड़तीस