मेरे स्मरण-दीप की बाती तुम बिन तिल तिल कर जलती है मेरे स्मरण दीप की बाती, देखो तो अब धार बनी है मेरी दृग बूं दो की पॉती, १ इधर स्नेह निधि ने, हरा धारें बन कर बहने की हठ ठानी, उधर जगा दी है तर रति ने स्मरण दीप रत्ति का पुरानी, मेरा स्नेह, तेल बन जलता, श्रो' बहता बन पानी पानी, यों नित शतधा क्षय होकर मी बढी सनेह तैल की थाती, तुम बिन तिल तिल कर जलती है मेरे स्मरमा दीप की जाती। २ सधन मोह तिमिराकृत, निस्तृत, निपट शूय है जीवन पथ मम आज बनी उसकी पगडही यथा शूल संकुल, अति दुर्गम, अति एकाकी है मेरा याना का यह क्रम, तिस पर मुझे मिली सनस में यह लप झप वाती अकुलाती, केसे पथ क्रमित होगा यह ! जबकि बनें मेरे दिन राती। ३ तुम जा बठे ज्योति महल में दीप टिमटिमाता सा देकर, तम भजन न कर सकेंगा, प्रिय, केवल यह स्मृति दीपक लेकर, अ धकार है मन में तुम बिन, तुम बिन लकुटि शू य मेर कर, उनतालीस अतिशय सूना,