पृष्ठ:क्वासि.pdf/६८

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अगणिता तव दीपमाला ? क्या जगाई हे तुम्हीने, सजन, झिल मिल दीपमाला ? इस महद् ब्रह्माण्ड भर में खून फेला हे उजाला । P परम अणु वाणु में रमे हो, दीप्ति की सुपमा लगाते, ओ मुदित आलोक दानी । फिर रहे तुम लो लगाते , भूमिमण्डल त्रो' रामण्डल थिरकते है जगमगाते, तर कही मम सदन अन तक यया रहा श्रीहीन, काला ? क्यों न या फेता उजाला २ घर अँधेरा छोड, आया देखने मै तव दिवाती, मुग्ध हूँ, प्रिय, तु धर, मै निरग्य कर यह ज्योति जाली, किरण त तु अन त फैले, तुम अलरा चख अशु माली, स्त ध हूँ, मुझ पर कहो यह कौ7 मोहन म न डाला? यो दिसाकर यह उजाला । ३ हूँ सदा से ही गणित म मे बडा असमर्थ, प्रियतम, कि तु इच्छा हे कि गिन लू ये तुम्हारे दीप इक्दम, इकतालीस