पृष्ठ:क्वासि.pdf/७४

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सासि साजन के नर नेह सलित में है अति विहार, र, हृदय हृदय से, प्राण प्राण से, आज मिला भरपूर, रे, पिय मय तिथ, तिय मय पिय हो जनताहा सश्रम दूर, रे, दूर करो पय क ा तर का यह अटपट जजाल, र, डोले वातो, बढे चलो तुम आया सध्या कारा, रे । ४ घन गरज, तम हो 7 सजन गालिगन का सयोग, रे, तो फिर कसे मिट सकता है, हिय का मत्त वियोग, रे ? जन झन कारें अमित झिल्लियों, हो दादुर का शोर, रे, ता हम हुलस कहेंगी उन से तुम्हरा ओर न छोर, रे, डओले पातो, कोयल कुहकी हरित आ7 की डाल, रे, सजन भवन पहुँचा दो हमको आया सध्या कारा, रे। श्री गणेश बुटीर प्रताप कानपुर विना २६ ६ ६६ अड़तालीस