पृष्ठ:क्वासि.pdf/७५

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मान कैसा चरण चुम्बन दान में अब मान कैसा ? प्राण मेरे, झिझक कैसी ? खीझ क्यों ? यह विति क्यों ? अभिमान मेर । P ? मान मत ठानो, न तानो भृकुटियों की चाप, पलभ, पहुँचने दो चरण तल तक ये अपर मम शुष्क, निष्प्रभ, मत हटाओं, मत हटाओ, मत हटाओ, पद कमल अन, कर रहे चीत्कार हैं या प्राण ये नादान मरे, मान कैसा । प्राण मेरे। २ ओ सलोने, हो गया है कौनसा अपराध मारी, जो चरण आराधना यों तडपती हे यह विचारी? हो गया है विश्व सूना, दसफर यह हठ तुम्हारी, करपना सूनी हुई है, भाव है सुनसान मेरे, मान कैसा ? प्राण मेरे। ३ जगत प्रागण, एक डग में, हो गया है पूर्ण सुविजित, हुलसती है यह धरा मृदु चरण तल के परस से नित, तप्त प्यासे, सुक रज कण हो रहे है सरस से नित, उनचास