पृष्ठ:क्वासि.pdf/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भावी की चिन्ताएँ NA 1 भावी की चिता सम्मुख अर आई है, विपम समस्याओं को घेर धेर ? प्रश्नों को उलझी सी मालाएँ गले डाल, जन न मुण्ड माली सा, श्राया है विकट काल ! सपनाश का श्मशान जाग उठा हे कराल, अट्टहास अरती सन जोगिनियों धाई हैं। किट समस्या नन, घिर घिर, ये श्राई है !! २ मानव की छाती पर मण्डित हैं अरुष चिह, मानव की वाणी का अर्थ भेद मि न मिन, मानन का जीवन है अनु स्वेद रक्त क्लिन । मानन ने ही अपनी गाँठे उलझाई है, भावी की चिताएँ सम्मुख अर आई है। ३ आज बना है मानव निरवलम्ब, अनिकेतन, आज निराश्रित से हैं सा जग जन गण के मन, १ अरुप अर्थात् घाव, अरुष चिह अर्थात् घावो के निशान । तिरपन