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धासि विजय मत्त जडता है, पराभूत है चेतन, परवशता की, माना हग में, परछाई है। विषम समस्याएं ये घिर घिर कर आई हे !! उलझा है वैयक्तिक, सामाजिक तारतम्य, भावी क्षण नहीं रह करपना विचार गम्य, पाए कोई मनुहार रम्य ? आज अनिश्चितताएँ सभी ओर छाई है, भागी की चिताएँ सम्मुख अन आई हे !! बरेली केन्द्रीय कारागार, दिनाङ्क, १६ जून १६७४ } चौवन