पृष्ठ:क्वासि.pdf/८८

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तुम युग-युग की पहचानी-सी तुम युग युग की पहचानी सी, हा कौन, सुमुखि । अनजानी सी ? ? मुझको तो कुछ भी नहीं स्मरण- उस प्राण मिलन के वे गत क्षण, उन पडियों पर है पडा हुआ- अति कातातर का युगाचरण, फिर भी तुमको जो अर देखा, तो, सजनि, लगी तुम जानी सी, तुम कोन अहो, पहचानी सी १ २ रिश्ता है क्या कोई, जो देख तुम्हें खि राई? चया पर्दा सा हट गया, जो कि,- लगती जगती घोई धोइ ? अग नया लग रहा, पर तुम तो लगती हो बहुत पुरानी सी, तुम कोन सुमुखि अनजानी सी ? 1 धासष्ठ