पृष्ठ:क्वासि.pdf/९०

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मान छोडो मान छोडो, मागिनी, अन नयन म सपा भरे तुम बिहेस दो शमिमागिनी गव, मान छोडो, मानिनी, अब। १ आज उस्फुल्लित निशा है, विहॅसती सी प्रतिदिशा है, यह घहरती सुरधुनी भी- इस शरत् में अति कृशा हे, श्राब न रूठो, प्राण, आई यह ठिठुरती यामिनी, अब, मान छोडो, मानिनी, अना २ देव सरि में आज तिरने-~- आ गई हैं च द किरण, नील अम्बर में लगे है शुभ्र बादल पुञ्ज घिरने, मद भरी हे प्रकृति, तुम हो क्यों विरत सन्यासिनी अन ? मान छोडो, मानिनी, अब। चौसठ