पृष्ठ:क्वासि.pdf/९३

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छासि फाग सुहाग भरी होली का यहाँ कहाँ रस रास ? अरे ओ, मुसरित फागुन मास ! । कनकन, रामबास की कठिन गॉस में, मज बान की प्रखर फॉस म, अटकी है जीवन की घडिया, यहा परिश्रम रुद्व सॉस में। यहाँ न फ्ला तू वह अपना लाल गुलात बिलास, अरे, अरुणारे फागुन मास ! ५ छाई जजीरों की घनघन, गर का अर्राटा पला, यहाँ कहाँ पनघट की सनसन कसे तुझको यहाँ मिलेगा होती का आभास, अरे, हुरियारे फागुन मास ! ६ यह नि ध भानना ही फी, चपल तरङ्ग अपने जी की,- बेडी की यह 2 १ गरी -ब दी गण बेल के सदृश जुतकर जिस यंत्र से कुएँ से पानी सीचते ह, उसे गर्रा कहते हैं। कारागार की भाषा में इस प्रकार जल रवींचने वाली साली का 'गकिमान' कहा जाता है। सड़सठ