पृष्ठ:क्वासि.pdf/९५

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वायु से- 1 न बह, तूरी, अटपटी बयार जजर मेरे वातायन हैं, टूटा मेरा द्वार । न बह, तू री, अटपटी बयार । १ आज सॉझ के समय न कर री, तू ऐसा उत्सात, छप्पर के तिनकों के प्रति यह केसा अत्याचार ? नरह, तूरी, अटपटी बयार । २ मेरे तन के चिथडों से पर्यो तुझको इतना और ? गत झकझोर उ हे, री चपली , बिखर जायेंगे तार, न पह, तू री, अटपटी बयार । ३ सूखे पात उडाकर, लाकर, आँगन में मत डाल , इस पतझड की दुसह वेदना का मन कर विस्तार, न पह, तू री, अटपटी बयार । सर सर हहर हहर करती मत मा कुटिया के बीच । उनहत्तर