पृष्ठ:खग्रास.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०१
खग्रास

लिजा मुस्कराई। वह कुर्सी पर बैठ गई। उसने कहा--"हाँ, अब बताओ हम कहाँ चल रहे है?"

"बड़ी मजेदार यात्रा है। जब से हमारा स्पूतनिक मुक्ताकाश में छूटा है, दुनियाँ की नजर आकाश पर अटक गई है और अब हम पृथ्वी के अगम समझे जाने वाले हिम प्रदेश-दक्षिणी ध्रुव में चल रहे हैं।

"सच? मैंने कल ही पढ़ा था कि अनेक देशो के अभियान दल वैज्ञानिक उपादानो से सम्पन्न होकर दक्षिण ध्रुव प्रदेश को नाप डालने के लिए दृढ़ संकल्प होकर विश्व के इस निचले केन्द्र की ओर निरन्तर बढ़ रहे हैं।"

"बहुत दिन से मैं इस अगम क्षेत्र की बात सुनती आ रही हूँ। मेरे मन में यह जानने की प्रबल लालसा है कि वह प्रदेश कैसा है जहाँ पहुँचने के मानव के हर प्रयास अभी तक विफल हुए है।"

"वह तुम अपनी आँखो से देख लोगी, डार्लिंग। हम विफल प्रयास होकर नहीं लौटेगे।"

"वहॉ होकर लौटने वालो का कहना है कि वह ऐसा कल्पना लोक है जहाँ कल्पना भी चकराती है।"

"तो क्या हर्ज है, आज हम उसी कल्पना को साकार कर रहे है। बारहो महीने बर्फ से ढ़का रहने वाला दक्षिण ध्रुव प्रदेश आज वैज्ञानिको का आकर्षण केन्द्र बना हुआ है।"

"तो क्या और लोग भी वहाँ गए है?"

"अन्तर्राष्ट्रीय भू भौतिकी वर्ष के अन्तर्गत कोई चौदह राष्ट्रो के वैज्ञानिको ने इस बार दक्षिणी ध्रुव पर अभियान किया है। इससे प्रथम इतना भारी अभियान पहले कभी इस अजय प्रदेश पर नहीं हुआ था।"

"नहीं, जहाँ तक मुझे याद है, अब से कोई १३५ वर्ष पूर्व एक अंग्रेज यात्री ने इस अगम देश को सर्वप्रथम देखा था। उसका नाम याद नहीं आ रहा।