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खग्रास

इधर एक वर्ष से अमरीका और ब्रिटेन ने मिल कर यह फैसला किया था कि 'नाटो' देशो में परम्परागत हथियारो में कमी करके उनके क्षेत्रो में अणु और उदजन बमों के भण्डार बनाए जाए। अब इस रूसी सफलता को देख कर पश्चिमी योरोपीय देशो में यह भय व्याप गया कि यदि तृतीय विश्व युद्ध हुआ तो उनकी खैर नही। जिस देश के अड्डो से अणुबम फेंकने की तैयारी की जाएगी, उन उन देशो पर सोवियत रूस पहिले ही अणु व उद्जन बम डालेगा। क्योंकि अब योरोपीय देश यह समझ गए थे कि वैज्ञानिक प्रगति के क्षेत्र में सोवियत रूस अमेरिका से बहुत आगे बढ़ गया है। ऐसी अवस्था में योरोपीय देश अमरीकी गुट में रह कर सोवियत रूस का कोप-भाजन होना क्यों चाहते? इसी भावना से योरोपीय और अमरीकी दृष्टिकोण में अन्तर पड़ गया और वह क्षण आ गया कि 'नाटो' संगठन छिन्न-भिन्न हो जाय। और यह स्वाभाविक था कि यदि 'नाटो' संगठन नष्ट हो गया तो 'सीटो' और 'सीएटो' संगठनो पर भी असर पड़े।

इन सब भावनाओ के कारण रूसी उपग्रह के सफल प्रयोग का राजनैतिक महत्व अत्यधिक हो गया। और अमेरिका को भयभीत होकर आत्मालोचन करना पड़ा। अमरीका में सर्वत्र यह चर्चा होने लगी कि अमरीका विज्ञान की दौड़ में पिछड़ गया। अमरीका के प्रभावशाली पत्रो ने खुल्लम-खुल्ला ऐसे लेख लिखे कि जब से मेकार्थी ने कम्युनिष्ट विरोधी अभियान में शिक्षा-शास्त्रियो और वैज्ञानिको की निन्दा शुरू की तभी से वैज्ञानिको ने निराश होकर मन से काम करना छोड़ दिया। न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा कि अमरीका में प्रक्षेपणास्त्र और उपग्रह सम्बन्धी विकास की गति धीमी होने का कारण प्राविधिक (टैकनोलोजिकल) ज्ञान की कमी है। न्यूयार्क हैराल्ड ने लिखा कि अमरीका की शिक्षा का स्तर इसलिए गिर गया कि वह प्रत्येक चीज को धन की तराजू पर तोल रहा है।

जिस समय अमेरिका मे घबराहटे फैली हुई थी तभी एक जर्मन वैज्ञानिक ने एक वक्तव्य दिया कि यदि रूसी वैज्ञानिक एक कुत्ते को उपग्रह में वापस बुला सकते है तो वे उपग्रह में रखे हुए अणुबमो को दुनियाँ के किसी