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खग्रास

शताब्दी पूर्व के साहसी यात्री के रहस्य पूर्ण गुप्त आवास को देख रहे थें जिसके विषय में कोई कुछ नहीं जानता था।

प्रोफेसर अब साहस करके आगे बढ़े। केबिन के भीतरी कक्ष का द्वार थोड़ा बन्द और थोड़ा खुला था। धड़कते हुए कलेजे से तीनों यात्री भीतर घुसे। कैसा रोमांचकारी दिल को थर्रा देने वाला दृश्य था। वहाँ छै आदमी बराबर-बराबर कम्बल से शरीर ढाँपे सो रहे थें। उनके मुँह का भाग खुला था और आँखे बन्द थी। बहुत ध्यान से देखने ही से यह जान पड़ता था कि सोने वालों ने गत आधी शताब्दी से सांस नहीं ली है। भय की एक सिहरन सी तीनों के शरीर में दौड़ गई। उन्होंने मुँह फेर कर देखा—एक अधेड़ सा व्यक्ति भट्टी में आग जला रहा था, भट्टी पर पानी उबल रहा था। भट्टी, पानी और वह आदमी ऐसा प्रतीत होता था कि किसी जादू के बल से स्तब्ध हो गये थें।

"हकीकत यह है कि अकस्मात ही हिम का प्रबल तूफान आया और ये सब जहाँ जिस तरह थें वहीं जम गए।" प्रोफेसर ने सहमी सी आवाज में कहा।

जोरोवस्की एकाएक किसी असाधारण कल्पना से उछल पड़े। उन्होंने लपक कर प्रोफेसर का हाथ पकड़ कर कहा—"प्रोफेसर, यह तो एक प्रकार का रेफ्रजरेटर है। यहाँ न कोई रोग ही हो सकता है न रोग-कीटाणु रह सकते हैं। न कोई चीज सड़ गल सकती है न किसी चीज में जंग लग सकता है। क्यों है न यही बात?"

प्रोफेसर कुछ गम्भीर बात सोच रहे थें। उन्होंने चुपके से सिर हिला दिया। जोरोवस्की ने कहा—

"प्रोफेसर, क्या ये लोग मर चुके हैं?"

"बड़ा अद्भुत प्रश्न है। सच पूछा जाय तो मैं भी यही बात मन ही मन सोच रहा हूँ।" प्रोफेसर ने पड़े हुए छैहो आदमियों की मुख-मुद्रा देखते हुए कहा।"

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