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खग्रास

प्रकाश के समान दीख रही थी। वह आकाश पर लहराती हुई चादर जैसी प्रतीत हो रही थी कि मानो बहुत से रस्से आपस में उलझ गये हैं। कभी-कभी वह सिर के ऊपर एक बड़े पहिये के समान घूम रही थी।

अब चन्द्रोदय हुआ। चन्द्रोदय का दृश्य भी अभूतपूर्व था। वह अस्त होने से प्रथम कई दिन तक घूमता रहा।

तापमान शून्य से भी नीचे ६० डिग्री पर पहुँच रहा था। इस भयानक सर्दी के कारण बिजली के तारों का ऊपरी आवरण उतर गया। स्पंज हाथों में भुर भुरा गये। पत्थर पर गर्म सीसा गिरकर जैसे जम जाता है उसी प्रकार पारा बर्फ पर गिरते ही जमने लगा। अब तो आदमी का हवा में सांस भी जम रहा था। सांस के जमने से एक विचित्र ध्वनि आती थी। ऐसा प्रतीत होता था जैसे रेत पर से समुद्र की लहरें पीछे लौट रही है। अब बर्फ भी चटक रही थी। और बर्फ के सिकुड़ने से अनगिनत दरारें पड़ती जा रही थी।

परन्तु भीषण सर्दी और फीकी रात न विश्राम के लिये थी न सोने के लिए। कैम्प में सभी काम दिन की भाँति हो रहे थें। मिस्त्री और इन्जीनियर अपना काम कर रहे थें। उन्हें इन्जिनों का ओवर हालिंग करना था। ईंधन के डब्बों का बदलना था। जो चीजें टूट-फूट गई थी, उनकी मरम्मत करना था। इसी भीषण सर्दी में किसी धातु को छूना भी साहस का काम था। छूते ही हड्डियों तक सर्दी दौड़ जाती थी। बड़े-बड़े हीटर की तेज नीली लौ गर्मी पहुँचा रही थी। कारीगरों ने हाथों में चर्बी लगाई हुई थी। इस भय से कि धातु से वे चिपक न जाएँ।

भूतत्वविद अपना कार्य बर्फ के एक घर में कर रहे थें। उनके सामने अनेक नक्शे फैले हुए थें। अनेक फ़ोटो बिखरे हुए थें—जिनका वे गम्भीरता से अध्ययन करते और इस अगम देश का नया नक्शा बनाते जा रहे थें। साथ के कमरे में केमरामैन और फोटोग्राफर नए-नए निगेटिव धो रहे थें। बड़े-बड़े बर्तनों में बर्फ उबाली जा रही थी। और उसका जब पानी बन जाता था तो बिजली से गर्म बर्तनों में भर लिया जाता था। सबने बिजली से गर्म कोट