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खग्रास

राकेट चार दौरों में सारी यात्रा पूरी करने की दृष्टि से तैयार किया गया था। पहले दौर का राकेट भली-भाँति परीक्षित तथा चिर-परिचित "रेडस्टोन" राकेट था। इसका कार्य अन्तरिक्ष में उपग्रह को धकेलना था। इस अवसर पर इसके टेक अपेक्षाकृत कुछ अधिक लम्बे रखे गए थें तथा इनमें शक्ति पैदा करने के लिए सामान्य अल्कोहल के स्थान पर 'हाइड्रोआइन' पर आधारित 'हाइडाइन' नामी शक्तिशाली तरल ईंधन इस्तेमाल किया गया था। 'रेडस्टोन' के अग्र भाग पर बेलननुमा ढोल सा लगा हुआ था, जिसे उसके अग्र भाग पर घुमाया जा सकता था। इस ढोल में १४ छोटे ठोस ईंधन से चलने वाले राकेट थें, जिनकी लम्बाई ५० इंच तथा व्यास ६ इंच का था। इस ढोल के अगले भाग में ८० इंच का ठोस ईंधन से चलने वाला एक और राकेट था, जिसका अगला भाग स्वयं कृत्रिम उपग्रह था।

छोड़ने के समय, बिजली की छोटी सी मोटर से चलने वाला यह ढोल घूमने लगा। यह चक्कर काटना उसी किस्म का था, जैसे गोली छूटने से पूर्व राइफल में चक्कर काटती है। ढोल को घुमाने का एक उद्देश्य यह भी था कि यदि ढोल में बन्द कोई छोटा राकेट अन्य राकेटों के कार्य शुरू कर देने के बाद काम शुरू करे या उसके चलने में कोई भूल हो, तब राकेट गलत मार्ग अपनाने से बचा रह सके।

जब कृत्रिम उपग्रह को छोड़ने की तैयारी पूरी हो गई, तब समस्त राकेटों का कुल वजन ६५,००० पौण्ड था। ८३,००० पौण्ड का धक्का देने वाले प्रथम दौर के राकेट के इंजन ने काफी तेजी से इसे भूमि से उठाया। पहले दौर का राकेट कृत्रिम उपग्रह को लगभग ६० मील ले गया। यह कार्य १५० सैकेण्ड में सम्पन्न हो गया। इसके बाद 'रेडस्टोन' का ईंधन समाप्त हो गया। इस बीच इसका अधिकांश भाग भूमि पर गिर पड़ा। केवल धूमते हुए ढोल से जुड़ा इसका छोटा सा अगला हिस्सा शेष रह गया। कई हजार मील प्रति घण्टे की गति से ऊपर की ओर उड़ते हुए एक नियन्त्रित धुरी परिवर्तित करने वाले यन्त्र की सहायता से ऊँचाई के बदले यान की गति क्षितिज के समानान्तर कर दी गई। यह कार्य अग्र भाग में दबाव युक्त हवा