पृष्ठ:खग्रास.djvu/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३९
खग्रास


"किन्तु राष्ट्र-मण्डल में एशियाई देशों के रहने से क्या लाभ है?"

"राष्ट्र-मण्डल में एशियाई तथा अफ्रीकी राष्ट्रों के अधिकाधिक प्रवेश से उसकी नीति में परिवर्तन होगा। और एक समय आएगा जब राष्ट्र-मण्डल में एशियाई व अफ्रीकी राष्ट्रों का अवश्य ऐसा प्रभाव होगा जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकेगी।"

"बगदाद समझौते के सम्बन्ध में आप क्या कहते हैं?"

"वह तो अब केवल एक कागज मात्र रह गया है। और बगदाद से उसका कोई सम्बन्ध नहीं रहा है।"

"मिश्र और हंगरी की घटनाओं को आप कैसा समझते है?" स्मिथ ने भूदेव की ओर देख कर कहा। भूदेव ने कहा—

"वे बड़ी दुखद घटनाएँ थी। जिनका संसार भर के स्त्री पुरुषों पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ा। इन घटनाओं से यह प्रमाणित हो गया कि अत्यधिक शक्तिशाली देश भी अब न तो पुराने साम्राज्यवादी तरीकों पर लौट सकते है, न कमजोर देशों पर हुकूमत ही कर सकते हैं। विश्व का जनमत अब ऐसी दुखद घटनाओं का प्रतिरोध करने के लिए संगठित हो चुका है। और यदि फिर ऐसी घटनाएँ होगी तो उनसे स्वाधीनता का क्षेत्र विस्तृत होगा।"

"तो अब आप बतलाइए कि भारत की नीति का मुख्य ध्येय क्या है?"

"मात्र शान्ति कायम रखना। इसी कारण हमने किसी भी सैनिक सन्धि या इस प्रकार के अन्य गठबन्धनों से अलग रहने की नीति अपनाई है। गठबन्धनों से अलग रहने की हमारी नीति का मतलब निष्क्रियता या विश्वास हीनता नहीं है। अपितु यह हमारे सामने एक ठोस और जोरदार दृष्टिकोण हैं। हम समझते हैं कि प्रत्येक देश को न केवल स्वाधीनता का अधिकार है, बल्कि उसे अपनी नीति और जीवन पद्धति निर्धारित करने का भी अधिकार है। इसीलिए हम एक देश द्वारा दूसरे देश पर आक्रमण न करने, दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करने, पारस्परिक सहिष्णुता तथा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की क्षमता में विश्वास करते हैं। हम समझते हैं कि राष्ट्रों के मध्य स्वतन्त्र