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खग्रास

एक अत्यन्त गुप्त रहस्य प्रकट करता हूँ जिसके प्रयोग हम भारत मे कर रहे है।"

"आपकी अत्यन्त कृपा है डा॰ भामा।"

"बात यह है प्रोफेसर, सूर्य मे भी वही प्रक्रिया होती है जो उद्जन बम विस्फोट में होती है। सूर्य का तापमान दो या तीन करोड डिगरी सेटीग्रेड के बीच रहता है। सूर्य के अन्दर साधारण उद्जन गैस की न्यास्टि (न्यूविलयस) मिल कर ही हीलियम बनाती है। उद्जन के चार परमाणु मिलकर हीलियम को एक परमाणु बनाते है, जिससे जब कि उद्जन का भार एक होता है, तो हीलियम का चार हो जाता है।"

"हाँ, हाँ, यह तो है। परन्तु आप इससे किस निर्णय पर पहुँचते है?" प्रो॰ कुरशातोव ने अत्यन्त उत्सुक होकर डा॰ भामा से पूछा।

भामा ने कहा—"इस प्रक्रिया को या तो द्रवण प्रतिकिया कह लीजिए या ताप न्यष्टि प्रतिक्रिया। क्योकि इससे ताप उत्पन्न होता है। अब, सूर्य मे जो यह प्रतिक्रिया होती है, उसमे साठ करोड टन उद्जन प्रति सैकिण्ड ५९ करोड ६० लाख टन हीलियम मे बदलती है। शेष ४० लाख टन उद्जन सूर्य से शक्ति के रूप मे निकलती है। जिसका थोडा सा अश पृथ्वी पर होना सम्भव है।"

प्रोफेसर कुरशातोव खुशी से उछल पडे। वे दोनो हाथ मलते हुए उत्तेजित स्वर मे बोले—"ओह, डा॰ भामा, इस इतनी सी साधारण बात पर हम लोगो ने अभी तक ध्यान ही नही दिया था। मैं अब समझ गया, आप यह कहना चाहते है कि सूर्य भी एक विराट् उद्जन बम है, यही न?"

"निस्सन्देह, मै यही कह रहा हूँ, प्रोफेसर। उद्जन बम मे जिस तत्व का प्रयोग होता है, वह भारी उद्जन 'ड्यूटीरियम' होती है, जिसका भार साधारण उद्जन से दुगना होता है।"

"हॉ हॉ, किन्तु ड्यूटीरियम की न्यष्टियो का द्रवण करने के लिए लग- भग दस करोड डिगरी सैन्टिग्रेट तापमान की आवश्यकता है।"