पृष्ठ:खग्रास.djvu/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१
खग्रास

किरणो, उत्तरी ज्योतियो, पृथ्वी के चुम्बकत्व तथा पृथ्वी के वायु मण्डल की विद्युन्मय पट्टी 'अयन मण्डल' का गहराई से अध्ययन करे। वैज्ञानिको ने जो छानबीन की तो ज्ञात हुआ कि इस काल मे चुम्बकीय तूफान आया था और अयन मण्डल मे भी बहुत उथल-पुथल हुई थी। कोलोरेडो विश्वविद्यालय की वेधशाला के निर्देशक तथा अखिल भू-वर्ष की अमरीकी समिति के सौर गति-विधि मण्डल के अध्यक्ष डा. वाल्टर राबर्ट्स ने पता लगाया था कि मार्च के अन्तिम सप्ताह मे सूर्य मे असाधारण विशालकाय ज्वालाए फैली हुई थी। इससे पूर्व १ जुलाई को भी ऐसा ही भयानक विस्फोट हुआ था।

सूर्य मण्डल मे जो धब्वे देखे गए थे, वे छोटे, बड़े अनेक थे। छोटे सैकडो और बड़े हजारो मील तक फैले हुए थे। सबसे बड़ा धब्बा जो ७ फरवरी सन् १९५६ मे देखा गया था, हमारी पृथ्वी से ३० गुना बडा था। यह पता लग गया है कि ये धब्बे स्थिर नहीं रहते, अपनी आकृति बदलते रहते हैं और चलते रहते है। बहुधा ये धब्बे सूर्य-पिण्ड के उत्तरी या दक्षिणी भागो मे उत्पन्न होकर मध्य भाग की ओर आकर विलीन हो जाते है। इसके बाद फिर दूसरे धब्बो की वही उत्पत्ति होती है जहाँ पूर्व धब्बे थे। यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है।

यह एक महत्वपूर्ण बात है कि इन धब्बो का पृथ्वी के जीवों के जीवन से गहरा सम्बन्ध है। बहुधा जब ये धब्बे दिखाई पड़ते है तब या तो दुष्काल-सूखा पड़ता है, या कुतुबनुमा की सुई अपना काम नहीं करती। ये धब्बे वास्तव में क्या है, इस सम्बन्ध मे वैज्ञानिक भाति-भाति की अटकले लगाते है। एक अटकल यह भी है कि सूर्य मण्डल मे जो अति भीषण विराट ज्वालामुखी गह्वर हैं, उन्ही से जब भीषण उद्गार निकलते है तब ये गड्ढे दिखाई पड़ते है। इस के बाद ही ज्वाला की लपटें निकलती है। रूसी वैज्ञानिक डा॰ स्कोताकोविच का अनुमान है कि सूर्य के अधिक धब्बो का अर्थ है अधिक वर्षा। परन्तु यह वर्ष समूचे सौर मण्डल का असाधारण वर्ष था। सूर्य मे बड़े-बड़े भयकर विस्फोट होने वाले थे जिसके बड़े-बड़े परिणाम शीघ्र ही हमारे सामने आने वाले थे।