पृष्ठ:खग्रास.djvu/४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


समय यदि सोवियत रूस ने धमकी न दी होती तो शायद तृतीय विश्व युद्ध भडक उठता। उस समय युगोस्लेविया से मास्को तक पश्चिमी एशिया के रूसी हवाई अड्डो पर अनगिनत बमबर्षक हमले के लिए तैयार खडे थे। रूस वास्तव मे पच्छिमी एशिया पर पच्छिमी राष्ट्रो का हमला होते ही अरब देशो की तरफ से लडने को कतई तैयार था। रूस का यह रुख देखकर ही पश्चिमी राष्ट्रो ने ईराक पर हमला नही किया। उन दिनो पैरिस, लडन और बर्लिन मे विदेशियो के लिए असाधारण सकट उठ खडा हुआ था। पश्चिमी राष्ट्र ईराक पर अपना सरक्षण चाह रहे थे, और एशियाई-अफ्रीकी राष्ट्रो ने एकमत से माग की थी कि पश्चिमी एशिया से अमरीका और ब्रिटेन की सेनाएँ हटा ली जाय। पश्चिमी राष्ट्र यह विरोध और धमकी देखकर दब गये और उन्होने ईराक की नई सरकार को मान्यता दे दी।

२६ सितम्बर को बर्मा के प्रधान मन्त्री ने वहाँ की राजनैतिक दलबन्दी से तग आकर प्रधान सेनापति को प्रधान मन्त्री बना दिया। उधर ८ अक्टूबर को जनरल अयूब खॉ की डाट खाकर पाकिस्तान के राष्ट्रपति मिर्जा ने नून का मन्त्रिमण्डल भग कर दिया। और जनरल अयूब खाँ ने सम्पूर्ण देश मे सविधान भग करके मार्शल-ला लगा दिया। अब जनरल अयूब पाकिस्तान के सर्वेसर्वा बन गए-मिर्जा दुम दबा कर योरोप भाग गए। थाईलैण्ड मे एक फौजी शासन भग होकर दूसरा फौजी शासन स्थापित हुआ। सूडान मे १७ नवम्बर को प्रधान सेनापति प्रदूव ने जनतन्त्री सरकार को उखाड कर अपना शासन स्थापित कर लिया, यद्यपि इस सैनिक विद्रोह को जनता का कोई सहयोग न था। लका और इन्डोनेशिया में भी सैनिक नेताओ ने फौजी शासन स्थापित करने की चेष्टा की। पर लका मे तो फौजी शासन का पहले ही भण्डा फोड हो गया। इन्डोनेशिया मे सैनिक नेताओ ने विदेशियो की सहायता से सुमात्रा में समानान्तर सरकार बनाई, पर चली नही। वैधानिक सरकार ने उसे उखाड फैका। विद्रोहियो ने विदेशो मे भागकर शरण ली। फ्रांस में फौजी जनरल द गाल ने अपनी सत्ता जमाई। इस काम मे अल्जीरिया स्थित फ्रेंच सेना ने उन्हे सहायता दी। अल्जीरिया में बसे फ्रेन्च नागरिको और फ्रेन्च सैनिको ने पहिले अल्जीरिया मे फौजी शासन स्थापित किया-फिर