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खग्रास

थे जो ऐसी स्थिति में सीधे उतरने की अपेक्षा तिरछे उतरने में सहायक होते थे। मैंने तुरन्त राकेट छोड़ने आरम्भ कर दिए और हमारा विमान तिरछी दिशा में चन्द्रलोक के ऊपर उपयुक्त स्थान की तलाश में घूमता रहा। कई बार हम चट्टानो से टकराने से बाल-बाल बचे। उतरने योग्य स्थान की तलाश में मैंने सैकड़ों मील का चक्कर लगा डाला। परन्तु मुझे कही भी उपयुक्त समतल मैदान नहीं मिला। जैसी ऊबड़-खाबड़ भूमि वहाँ थी, वहाँ उतरना मृत्यु के मुख में जाना था। अपनी कठिनाई मैंने मास्को केन्द्र को सूचित कर दी, परन्तु वे बेचारे मेरी वहाँ क्या मदद कर सकते थे। मैं हिम्मत बाँधकर स्थान की तलाश में तिरछा उड़ा चला जा रहा था कि अकस्मात् ही एक अप्रत्याशित घटना हो गई। क्षण भर ही में हमारा विमान घोर अन्धकार में डूब गया। सूर्य का तीव्र प्रकाश एक क्षण में ही गायब हो गया। मेरी दशा ऐसी थी कि जैसे पहाड़ी मार्ग में जाती हुई ट्रेन अकस्मात् किसी लम्बी सुरङ्ग में घुस जाय, और यात्री गहन अन्धकार में डूब जाय। यह गहन अन्धकार भी गहनतम था और इसका कही आदि अन्त न था।"

"ओहो, तो तुम चन्द्रलोक में उस अज्ञात भाग में जा पहुँचे जिसके सम्बन्ध में पृथ्वी के मनुष्यों को कुछ भी ज्ञात नहीं है और जो सदैव पृथ्वी से छिपा रहता है।"

"हाँ, यही तो हुआ। पर मेरी तो सारी हिम्मत ही समाप्त हो गई। और मैंने समझा कि बस, अब मृत्यु में विलम्ब नहीं है। मेरी सामर्थ्य अब इतनी भी नहीं रही कि मैं यान को अपने काबू और नियन्त्रण में रख सकूँ। उस क्षण का भला मेरी प्यारी लिज़ा, मैं तुमसे कैसे वर्णन करूँ? बस, तुम्हारी स्मृति मेरे मस्तिष्क में थी और मेरा हाथ मेरे हृदय पर, जहाँ तुम्हारी तस्वीर सुरक्षित थी। मैंने पृथ्वी को और जीवन को नमस्कार किया। तुम जानती हो कि मैं सदैव अपने विज्ञान ज्ञान के घमण्ड पर ईश्वर की हँसी उड़ाता था परन्तु उस क्षण जब मैंने मृत्यु को अपनी ओर हाथ बढ़ाते देखा तो मेरा मस्तिष्क ईश्वर के अज्ञात चरणो में झुक गया। अब मैं मास्को केन्द्र को भी संकेत भेजने के योग्य नहीं रह गया था। मेरी चेतना धीरे-धीरे लुप्त हो गई और मैंने जाना कि मेरी मृत्यु हो गई।"