पृष्ठ:खग्रास.djvu/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६५
खग्रास

लिजा ने काँपते हाथो से जोरोवस्की का हाथ पकड़ लिया और एक सिसकारी उसके कण्ठ से निकल पड़ी। फिर वह जोरोवस्की की गोद में गिरकर फफक-फफक कर रो पड़ी।

आगे की बाते

जोरोवस्की ने लिज़ा को हृदय से लगाकर कहा---"वाह, यह क्या? तुम तो एक बहादुर लड़की हो। फिर मैं तो अब जीता जागता तुम्हारे सामने ही मौजूद हूँ।"

"ओह मेरे प्यारे, कितनी भयानक बात है। कोई इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता।"

"सच है, पर आगे का किस्सा तो सुनो।"

"निश्चय ही वह इससे अधिक भयंकर नहीं होगा।"

"वाह, भय के बाद ही तो आशा का आगमन होता है।"

"खैर, कहो।"

"होश में आकर मैंने देखा कि मेरा यान ठोस भूमि पर टिका हुआ है। यद्यपि वह जरा तिरछा था और उसकी अगली नोक जमीन में धस गई थी, पर यान को कोई हानि नही पहुँची थी। मास्को के बैचेन संदेश आ रहे थे। वे कह रहे थे--जोरोवस्की जोरोवस्की क्या बात है? क्या तुम हमे सुन रहे हो? हम मास्को से बोल रहे है, तुम्हारे विमान की आवाज हमे नही आ रही है। गति-सूचक सुई बन्द है। क्या तुम अब कही टिक गए हो। लेकिन तुम बोलते क्यों नहीं, जोरोवस्की, जोरोवस्की, बोलो-बोलो।"

"आखिर मेरा स्वर फूटा--मैंने कॉपते स्वर मे कहा--प्रोफेसर, मैं सही सलामत इस समय चन्द्रलोक पर उतर गया हूँ।"

प्रयत्क्ष ही आनन्द और हुर्रा की ध्वनि मेरे कानो में पड़ी। तोपो की गड़गड़ाहट मैंने सुनी। आवाज आई--जोरोवस्की! दोस्त, हम खुशियाँ मना रहे हैं। हम तुम्हे १०१ तोपो की सलामी दे रहे है। क्या तुम हमे सुन रहे