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खग्रास

काम नहीं कर रहा था और हमारे यान को जैसे कोई डोरा पकड़ कर खींच रहा था। मैं एकदम बौखला गया। परन्तु इसी समय मुझे प्रोफेसर की आवाज सुनाई दी--जोरोवस्की, जोरोवस्की, इस वक्त पृथ्वी पर समुद्र में ज्वार आ रहा है। तुम क्या वहाँ कुछ विचित्रता अनुभव करते हो? मैंने चीखकर कहा--प्रोफेसर, मैं किसी आकर्षण से खिचा चला जा रहा हूँ। जिस पर मेरा काबू नहीं है। परन्तु मैं अन्धकार से प्रकाश मे रहा हूँ।"

और सचमुच मैंने देखा कि मेरे चारो ओर उज्ज्वल सूर्य का प्रकाश फैला हुआ था। एक स्थान पर आकर मेरा यान फिर वहाँ के धरातल पर टिक गया। मैं बाहर आया। बड़ी अजीब बात थी कि मैं इस तरह चल रहा था जैसे वायु में ऊपर उड़ रहा होऊँ। मुझे अपना बोझ भी नहीं मालूम दे रहा था।

मैं अब अपने यन्त्रो का ठीक-ठीक प्रयोग करता जा रहा था और आश्चर्यजनक दृश्य देख रहा था जिनके मैंने अनगिनत फोटो खींच लिए।

घड़ी की सुई बता रही थी कि अब चन्द्रलोक पर रहते मुझे तीन दिन बीत चुके थे। इन तीन दिनो में मैंने बहुत काम किया था। बहुत चित्र खींच कर मास्को भेजे थे। खगोल सम्बन्धी अनेक नए तथ्यो का संग्रह किया था जिन्हें सुन सुन कर मास्को में तहलका मच रहा था। पर उन्होने मुझे बताया कि मस्लहतन मेरी यह चन्द्रलोक की यात्रा अभी तक हमारी सरकार गुप्त रख रही थी। मैं एक क्षण भी व्यर्थ नही खो रहा था। जमीन खोदकर पुरातत्व के कुछ अवशेषो को प्राप्त करने की भी मैंने चेष्टा की। अब मेरे यान में असंख्य नमूने एकत्र हो गए थे।

मैं अपनी प्रत्येक सूचना मस्को भेज रहा था। जब मैंने प्रोफेसर को सूचना दी कि मैंने चन्द्रलोक के भिन्न-भिन्न खनिजो, गैस के समुद्र की गैसो और अन्य चीजों के सैकड़ों नमूने अपने यान में रख लिए है, तब उन्होने दर्द भरी आवाज में कहा---किन्तु जोरोवस्की, तुम अब कैसे पृथ्वी पर लौटोगे? हम लोग तुम्हे वहाँ से वापस बुलाने में असहाय हो रहे है। क्या चन्द्रलोक में बिल्कुल ही वायुमण्डल नही है?"