पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१०८

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खूनी औरत का


हैं और सारे दिन तूफान मचाया करते हैं ! ये जरा कोतवाल- साहब के मुहं लग गए हैं और उनका बहुतेरा काम भी बड़ी मुस्तैदी के साथ कर दिया करते हैं, इसीलिये यहांपर जरा इनकी बड़ी चलती है । यों तो ये बड़े नाकिस आदमी हैं, पर कोतवाल साहब के डर से कोई भी इनके धागे मोठ नहीं फहफा सकता। लो, भव तुम दोपहर तक बेफिक्री के साथ बाराम कर सकती हो, क्योंकि सभी दरोगाजी नाश्ता-चाश्ता फरके किसी मामले की तदारुक करने के लिये कहीं बाहर चले गए हैं। बस,अबके गए-गए, ये दोपहर के पहिले यहां कभी आवेगे।"

यह सुन कर मैंने कहा,"नहीं, भाई ! अब मुझे जादे आराम करने को कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं खूब अच्छी तरह रात को सो चुकी हूँ।"

यों कहकर मन ही मन मैं भगवान का स्मरण फरगे लगी । बस, योंही देखते-देखते सारा दिन बीत गया और संझा हुई । आज मेरे पास खाने-पीने की बात पूछने कोई भी नहीं आया था। हां, एक बात आज जरूर हुई थी । वह यह कि आज शिवरामतिवारी के बाद जो कांस्टेबिल मेरे पहरे पर मुकर्रर हुआ था, वह बहुत ही कमीना था । यह तो मैं नहीं जान सकी कि वह हिन्दु था, मुसलमान पर था वह पढ़ा ही हरामजादा! यह रह-रह कर मेरी कोठरी के आगे आकर खड़ा होजाता, मूछों पर बल दे-दे कर मुझे घूरता, तरह-तरह की छेड़छाड़ करता मोर हंस-हंस कर मेरे चेहरे की ओर टकटकी बांध कर निहारने लग जाता था! उसकी ऐसी चाल-ढाल देख कर मन ही मन मैं जली-भुनी जाती थी, पर लाचार थी। खैर,राम-राम करके रात के नौ बजे मीर रघुनाथसिंह मेरे पहरे पर आए।

योंहों और भी तीन घण्टे बीते और सच बारह बज गए,तब उन्होंने मुझसे यों कहा,--"क्यों, दुलारी ! आज तुम अभीतक