पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१२४) खूनी औरत का SELFISH STATUSTICE MEENARESHEE खुद लिख लिया था। इस बार की नकल या है,- हजरत कोतवाल साह उस कागज को अपनी आंख के आगे करके यो पढ़ने लगे,- "मेरा नाम दुलारी है। मेरे यार का नाम विश्वनाथ तिवारी था। मेरा मकान 'दौलतपुर, नाम्न के गांव में है। मेरी उम्र इस समय पंद्रह या सोलह बरस के लगभग होगी। मैं अभी तक कारी हूँ। आज कई दिन का अरसा हुआ कि मेरे पाप पलेग ले मर गए । इस के युछ ही दिन पहिले मेरी मां मर चुकी थीं। सो. मेरे बाप जय मरे, तब उस गांव का कोई भी उन्हें उठा नहीं गाया था, क्योंकि सारे गांव में पलेग फूट निकला था। इसलिये मेरे पाप के मरने पर उनसे उठाने के लिये जब गांववालों में से कोई भी न आया, तब मेरे यहां जो चार हरवाहे नौकर थे, वे ही मेरे बाप को उठा कर ले गए। यह देख कर मैं भी उन सभों के पीछे-पोछे दौड़ी गई। पर जब मैं गंगा किनारे पहुंची, तो मैने का देखा कि वे चारों गांव की ओर लौट रहे हैं! यह देख कर जम मैंने उन सभों से यों पूछा कि, 'तुमलोगों ने मेरे पिता का ना फिया " तो इस पर उन सभों ने यों जवाब दिया कि उन्हें हमलोगों ने गंगा में बहा दिया।' यह सुनते ही मैं उसी जगह थकर खाकर गिर गई, पर जग मुझे होश हुआ, तो मैंने अपने तई अपने घर में एक चारपाई पर पड़े हुए पाया ! यह देख कर मैं उछ बैठी। इतने ही में मेरी कोठरी में मेरा परोसी हिरवा नाऊ माया और यह मुझसे बुरी-बुरी बातें कह कर वाहियात छेड़छड़ करने लगा। इसको ऐसी ढिठाई देख कर मैं जल-भुन कर खाक होगई और इसे अपने यहांसे चलेजाने के लिये बार कार फहगे लगी। लेकिन इतगे पर भी जब वह न माना और जादे हाथ-पैर बढ़ाने लगा, तब तो मैं मारे गुस्से के आपे से बाहर होगई और उसे धरसी में परफ कर सकी छाती पर चढ़ बैठी। इसके बाद फिर तो मैने ऐसे