पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१३५

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सात खून (१३१) नहीं उठाना पड़ा। जब भी घर गई, तब मैगे देखा कि भव इस कमरे में पंद्र-श्रील भादमी बाकी रह गए हैं। यह देखकर मैने माप हो माा यह सम किया कि, 'ये लोग वकील-मुखतार होंगे!'हम थकील-मुमतारों में वह मारा फलूटा भी था, जिसकी सांप सी डरावनो मांखें मुझे बुरी तरह घूर रही थी ! मस्तु, भय यह सुनिए फि मजिष्टर साहब के हुक्म से पेशफार साहप कोतवाल साह के दिए हुए फागजों को सिलसिलेवार फिर पढ़गे मगे, और जप ये सच कागजों को सुना गए, तय हाकिम गे हम कागजों को ले और उन्हें समर-पलट कर देखना गौर कुछ लिखना प्रारम्भ किया । मुझसे अभी कुछ भी पूछा नहीं गया था गौर घोलगे की भी मुझे मगा ही थी, इसलिये मैं चुपचाप कमी हाकिम की भोर,कभी कोतवाल की ओर और फभी वहां पर मोजूद वकील-मुमतारों की गोर देखती मोर मन ही मम भगवती का स्मरण करती जाती थी। यो ही देश हाक र कागजों के दे लगे और कुछ लिखने के बाद हाकिम ने यहां ५६ मौजूद होईसपेकर से यों कहा,-" इस खूनो गौरत को जेल भेजों और कल अव्वल पक में इस पसामी को यहा हाजिर करो। . .. हस हुकुम को सुगफर कोर्टइन्सपेकर चार कांस्टेबिलों के घेरे में मुझे करके जरी से बाहर हुए। बाहर बाग पर मैं फिर एक सिरार की गाड़ी पर सवार कराई गई भौर कोर्टइमपेकृपया माय कास्टेबिलों के साथ जेलखाने पहुंचाई गई । जेल के अन्दर घुमाने पर मैं जेलर साहब के जिम्मे की गई गौर उन्होंने मुझे पता कोडरी में बन्द कर दिया। कुछ दिन रहगे पर मुझसे कोई लाने के लिये कहा गया, पर जब मैगे केवळ कच्चा दूध मांगा, तो इसका कोरा जवा दिया गया और सारी रात मैं बिमा दागे पानी के रक्खी गई । किम्त Manahaneleaninary-marineradhe