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पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१५४

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खूनी औरत का।


की सारी बदमाशी का हाल कह सुनाया, और साथही यह भी कहा कि, 'यही मेरी कोठरी के अन्दर घुसकर खुद डिबिया रख आया है।' पर पुलिस या हाकिम ने मेरी एक न सुनी और दोनों बहिनों को जेल भेज दिया। मेरे जेल में आने के पन्द्रह दिन बाद लूकीलाल यहां आया और हम दोनों बहनों को यों धमकाने लगा कि, 'अबकी बार तो मैंने तुम दोनों को फकत जेलही भिजवाया है, लेकिन इस बार जब तुम दोनों यहां से छूटोगी, तब मैं तुम दोनों को अपने काबू में करूंगा। अगर तब भी तुम दोनों ने कुछ ची चपड़ की तो फिर सीधा काले पानी या कुली बागान को भिजवादूंगा। हरामजादियो! तुमने मेरा ही टुकड़ा खाकर मेरे ही सिर को तोड़ डाला! अच्छा, अबकी सारी कसर निकाल लूंगा।"

इतना कहकर पुन्नी ने अपनी आंखें पोंछी और फिर वह यों कहने लगी,—"अब कहिए,सरकार! जेल से छुटने पर मैं किधर की होकर रहूंगी और किस तरह अपनी इज्जत और जान बचाऊंगी?

मैंने पुन्नी की दुःख भरी कहानी सुनकर उसे बहुत कुछ ढाढ़स दिया और यों समझाया कि तुम दोनों भगवान पर भरोसा रक्खो। वही परमात्मा तुम्हारी जान और लाज की रखवाली करेगा।"

यह सुनकर पुन्नी ने कहा,—"नहीं, सरकार! आप अब हम दोनों बहिनों को अपनी सरन में रखलें, तभी हमारी भलाई होगी।"

उसकी इस बेढंगी बात को सुन 'मैंने हंसकर कहा,—"तो क्या तुम दोनों मेरे साथ फांसी की तखती पर चढ़ोगी?"

पुन्नी बोली,—"उस पर चढ़े आपके दुशमन! अजी सरकार, अब आप कोई अंदेशा न करें, क्यों कि जिन बारिस्टर साहब ने आपके मुकद्दमे को अपने हाथ में लिया है, वे जेलर साहब से छाती ठोंककर यह बात कहते थे कि यह लड़की [अर्थात् आप] बेदाग छूट जायगी। इस लिये मुझे भी इस बात का भरोसा होगया है कि अब आप जरूर छूट जायंगी। तो कहिये कि फिर भी आप