तुझपर जूते पड़ेंगे और तेरी पकौड़ा सी नाक साफ़ करदी जायगी। इल लिये अब तुम दोनों को उसले तनिक भी न डरना चाहिये। अच्छा, अब मैं जाता हूं । अब नारायण का सुमरन करके आज का दिन तुम दोनों और काट दो।"
यों कहकर जब वे चलने लगे तो हम सबों ने फिर उन्हें प्रणाम किया और वे उसी सिपाही के साथ चले गए।
यद्यपि उनके आने और उनकी बाते सुनने से सुनी और मुन्नी के लिये में बिल्कुल बे फिक्र होगई थी, पर उन दोनों का रोते रोते बुरा हाल होरहा था और वे मुझे छोड़कर घर नहीं जाना चाहती थीं । पर भरता यह कैसे हो सकता था! क्योंकि मियाद पूरी होने पर भला कोई केदी एक दिनभी जेल के अन्दर रह सकता है?
योही रोते धोते तीसरे पहर के चार बजगये । ठीक उसी समय एक कांस्टेविल अाया और यह कहकर पुत्री और मुन्नी को अपने साथ लिवा ले गया कि,--" चलो, तुम दोनों को जेलर- साहब बुला रहे हैं।"
उन दोनों के जाने पर मैंने उठकर हाथ मुंह धोकर थोड़ा सा पानी पीया। यद्यपि पुन्नी और मुन्नी के लिये मैं निश्चिन्त होगई थी और मुझे इस बात का पूरा भरोसा था कि अब उन दोनों पर लूकीलाल का जोर-जुल्म न चलेगा, पर फिरभी उनका साथ छुटने से जो कुछ दुःख मुझे होने वाला था, उसका अंदाज़ा करके मेरा जी बैठा जाता था। क्योंकि इस बात की तो मुझे कुछ खबर थी ही नहीं कि मेरा क्या होगा, या कितने दिनों तक मुझे इसी तरह जेल में सड़ना होगा!
खैर, मैं इसी तरह की बातों को सोच रही थी कि इसने ही में पुन्नी और मुन्नी आकर मेरे पैरों पर गिर पड़ी और फिर उठ और हँसकर पुन्नी यो कहने लगी,--" लीजिये, सरकार ! भगवान