पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१७३

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सात खून।


पुन्नी की गोद में है, मुन्नी पंखा झल रही है और जेलर साहब कोठरी के बाहर खड़े हुए मेरे चहरे की तरफ गौर से देख रहे हैं।

यह देखकर मैं उठ बैठी और जब मेरा जी ठिकाने होगया, तब जेलर साहब ने मुझ से कहा,–"बेटी दुलारी! अब तुम्हारा जी कैसा है?"

मैंने कहा,—"अब मैं अच्छी हूं। कहिए, क्या बात है?"

जेलर साहब ने कहा,—"बड़ी खुशी की बात है। क्या अब तुम उल आनन्द समाचार के सुनने के लिये तैयार हो?"

मैंने कहा,—"हां, अब मेरा जी ठिकाने होगया है, इसलिये कृपा कर कहिये कि क्या बात है!

जेलर साहब ने कहा,—"मैने कचहरी से आकर पुन्नी और मुन्नी को इसीलिये बुलाया था कि इन दोनों के जरिये से तुम्हें खुश खबरी सुनाऊं। पर तुमतो ज़रा सा ही हाल सुनते सुनते बेसुध हो पड़ी थीं! खैर, अब तुम खुलासे तौर से वह सुनो कि हाईकोर्ट ने तुमको बिल्कुल बे कसूर कहकर छोड़ दिया। आज दो बजे दिन को जज और मजिस्ट्रेट के नाम इसी आशय का तार आगया और जज ने मजिस्ट्रेट को तुम्हें छोड़ देने को लिख भेजा। मजिस्ट्रेट ने मुझे बुलाकर यह हुकुम दिया है कि,—"कल सुबह सात बजे दुलारी छोड़दी जाय। केवल इतना ही नहीं, वहीं, कचहरी में ही मुझे बारिष्टर दीनानाथ का तार मिला। उस तार में वे लिखते हैं कि,—"दुलारी बेकसूर साबित होकर छुटकारा पागई। कल पहिली अप्रैल को सुबह सात बजे वह जेल से छोड़दी जायगी। आप इस बात की उसे इत्तला दे दें। मैं अपने मित्र और भाई दयालसिंह के पुत्र भाई निहालसिंह और उनकी स्त्री श्रीमती सुकुमारी देवी के साथ पौने ग्यारह बजे रात की पौसिंजर गाड़ी ले रवाना होकर सुबह साढ़े पांच बजे के बाद कानपुर पहुंचूंगा और सात बजने के पहिले ही जेल पर आजाऊंगा। मेरे आने के पहिले